तुर्की पूरी तरह से पाकिस्तान के साथ है क्यो?
टर्किश एयरफोर्स का सी-130 जेट इसी हफ़्ते पाकिस्तान में लैंड हुआ था. हालांकि तुर्की ने इस लैंडिंग को ईंधन भरने से जोड़ा था. इसके अलावा तुर्की का युद्धपोत भी कराची पोर्ट पर पिछले हफ़्ते आया था और तुर्की ने इसे आपसी सद्भाव से जोड़ा था.
शुक्रवार को भारतीय सेना ने कहा था कि 300 से 400 टर्किश ड्रोन का इस्तेमाल गुरुवार को पाकिस्तान ने भारत के अलग-अलग शहरों में हमले के लिए किया था.
भारत और तुर्की के संबंधों में असहजता इस बात से भी समझी जा सकती है कि नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बनने के बाद से कभी तुर्की के दौरे पर नहीं गए. सऊदी अरब में भारत के राजदूत रहे तलमीज़ अहमद से पूछा कि तुर्की खुलेआम पाकिस्तान की मदद क्यों कर रहा है?
पाकिस्तान के साथ इस्लाम के आधार पर तुर्की की वैचारिक क़रीबी है ''पाकिस्तान के साथ इस्लाम के आधार पर तुर्की की वैचारिक क़रीबी है. इसके अलावा तुर्की और पाकिस्तान शीत युद्ध में अमेरिका के पार्टनर थे. इनका सुरक्षा सहयोग बहुत गहरा रहा है. कई पाकिस्तानी जनरलों का तुर्की के साथ निजी संबंध रहा है. रक्षा सहयोग अब दोनों देशों में काफ़ी बढ़ गया है.''
''मुझे लगता है कि अर्दोआन पाकिस्तान से पुराने संबंध को और मज़बूत कर रहे हैं. अर्दोआन ने ख़ुद को इस्लामिस्ट नेता भी बनाया है और वो इस्लामिक चीज़ों को अहमियत देते हैं. अर्दोआन अक्सर कश्मीर का मुद्दा उठाते हैं और इसे इस्लामिक मुद्दे के रूप में पेश करते हैं. तुर्की ने स्पष्ट कर दिया है कि वह पाकिस्तान के साथ खड़ा है.''
''दिलचस्प यह है कि मध्य-पूर्व में दो अहम शक्तियां हैं, जिनमें तुर्की पूरी तरह से पाकिस्तान के साथ है और इसराइल भारत के साथ. तुर्की और पाकिस्तान के संबंध में इस्लाम की दस्तक अर्दोआन के आने के बाद हुई है. यानी दोनों देशों के संबंध 1950 से ही गहरे हैं लेकिन इस गहराई में इस्लाम अर्दोआन के आने के बाद आया और अब यह प्रमुखता से पैठ बना चुका है.''
क्या दो देशों का संबंध बिना फ़ायदे के केवल धर्म और विचार में क़रीबी से चल सकता है? यूएई और मिस्र में भारत के राजदूत रहे नवदीप सूरी से यही सवाल पूछा तो उन्होंने कहा, ''तुर्की और पाकिस्तान में केवल वैचारिक क़रीबी ही नहीं है बल्कि तुर्की को पाकिस्तान का पूरा डिफेंस मार्केट भी मिल रहा है."
"इसके साथ ही तुर्की इस्लामिक दुनिया में यह दिखाने की कोशिश करेगा कि वह एक इस्लामिक देश पाकिस्तान के साथ खड़ा था. तुर्की लंबे समय से इस्लामिक दुनिया के नेतृत्व की कोशिश कर रहा है लेकिन उसे चुनौती सऊदी अरब से मिलती है.'' सऊदी अरब के पास मक्का और मदीना की पवित्र मस्जिदें हैं तो तुर्की के पास उम्मानिया साम्राज्य की विशाल विरासत. इस्लामिक देशों के संगठन ओआईसी (ऑर्गेनाइज़ेशन ऑफ इस्लामिक कोऑपरेशन) में सऊदी अरब का दबदबा है जबकि अर्दोआन ने कोशिश की थी कि एक ऐसा संगठन बने जो उनके हिसाब से काम करे.
अर्दोआन ने दिसंबर 2019 में मलेशिया, ईरान और पाकिस्तान के साथ पहल की थी लेकिन सऊदी अरब ने पाकिस्तान को रोक दिया था. पाकिस्तान तुर्की के साथ उसी हद तक जाता है, जितना सऊदी अरब को स्वीकार्य होता है.
इस्लामी या मुस्लिम बहुल देशों में पाकिस्तान इकलौता परमाणु शक्ति संपन्न देश है. ऐसे में इस्लामी दुनिया में उसकी एक अहमियत बढ़ जाती है. तलमीज़ अहमद मानते हैं कि पाकिस्तान के साथ तुर्की का सैन्य सहयोग तो पहले से ही था लेकिन अब इस्लाम भी आ गया है.
''इस्लाम को एक मौक़ा परस्त स्लोगन के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है. जब फ़ायदे की बात आती है तो इस्लाम का ज़िक्र करते हैं. जब जियोपॉलिटिक्स में अपने हित की बात आती है तो इस्लाम नेपथ्य में चला जाता है. तुर्की की इस्लाम में ज़ुबानी दिलचस्पी है. तुर्की पश्चिम एशिया में अपना प्रभुत्व उस्मानिया साम्राज्य वाला चाहता है. उसकी प्राथमिक चाहत यही है और इस चाहत में तुर्की पाकिस्तान को अहम सहयोगी के रूप में देखता है.''
तुर्की का पाकिस्तान के साथ होना क्या भारत के लिए झटका है? ''तुर्की की भारत के साथ कभी हमदर्दी नहीं रही है. तुर्की कश्मीर पर हमेशा से भारत को छेड़ता रहा है. मध्य-पूर्व और गल्फ़ में भारत के हित इसराइल, सऊदी अरब, क़तर, यूएई और ईरान के साथ जुड़े हैं. इन देशों के साथ भारत के संबंधों में गर्मजोशी पर्याप्त है.'' सऊदी अरब पाकिस्तान और भारत दोनों के लिए अहम देश है. सऊदी अरब ने पाकिस्तान को अतीत में कई बार आर्थिक संकट से निकाला है. सऊदी अरब ने पाकिस्तान को जिस हद तक जाकर मदद की है, वैसी मदद तुर्की ने कभी नहीं की है. सऊदी अरब को भी पता है कि वो पाकिस्तान के लिए कितनी अहमियत रखता है.
भारत के साथ भी सऊदी अरब के बहुत व्यापक संबंध हैं इसमें हर चीज़ मौजूद है. सऊदी और भारत के संबंध में एक चीज़ मिसिंग है और उसमें शायद भारत कभी शामिल नहीं होगा और वो चीज़ है कि हमने सऊदी अरब की सुरक्षा के लिए कोई गारंटी नहीं दी है.
तुर्की और पाकिस्तान की जुगलबंदी को बहुत अहमियत नहीं देनी चाहिए क्योकि ''दुनिया भर में क़रीब 200 देश हैं और उनमें से तुर्की का पाकिस्तान के साथ होना बहुत झटके के रूप में नहीं देखा जा सकता है. अर्दोआन की इस्लाम को लेकर एक पोजिशन रही है और वही पोजिशन साफ़ दिख रही है.''
इस्लामिक देशों के संगठन ओआईसी ने दोनों देशों से तनाव कम करने की अपील की थी लेकिन कश्मीर के मामले में समर्थन पाकिस्तान का किया था. बुधवार को भारत ने पाकिस्तान में सैन्य कार्रवाई की तो ओआईसी ने बयान जारी कर चिंता जताई थी और कहा था कि भारत ने पाकिस्तान पर जो आरोप लगाए हैं, उन्हें लेकर कोई सबूत नहीं हैं. सबसे अहम बात है कि ओआईसी ने कश्मीर को दोनों देशों के बीच अहम मुद्दा बताया था. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तुर्की और पाकिस्तान की एकता दशकों से साफ़ दिखती रही है. दोनों देश एक दूसरे को अपने आंतरिक मसलों पर समर्थन करते रहे हैं. दोनों देशों की क़रीबी अज़रबैजान को लेकर भी है.
तुर्की, पाकिस्तान और अज़रबैजान की दोस्ती आर्मीनिया को भारी पड़ती है. पाकिस्तान दुनिया का एकमात्र देश है, जिसने आर्मीनिया को संप्रभु राष्ट्र की मान्यता नहीं दी है.
अज़रबैजान विवादित इलाक़ा नागोर्नो-काराबाख़ पर अपना दावा करता है पाकिस्तान भी इसका समर्थन करता है. तुर्की का भी इस मामले में यही रुख़ है. इसके बदले में तुर्की पाकिस्तान को कश्मीर पर समर्थन देता है.
1980 के दशक में पाकिस्तान पर शासन करने वाले सैन्य तानाशाह ज़िआ उल-हक़ ने कहा था, ''पाकिस्तान एक आइडियोलॉजिकल स्टेट है. अगर आप पाकिस्तान से इस्लाम को किनारे कर सेक्युलर स्टेट बनाते हैं तो यह बिखर जाएगा.'' तुर्की और पाकिस्तान की क़रीबी को इस वैचारिक आईने में भी देखा जाता है.
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